अन्तरिक्ष में साइंटिस्ट कैसे रहते है? | How do scientists live in space in Hindi

आइये आज इस आर्टिकल में हम आपको बताते है कि साइंटिस्ट अन्तरिक्ष में कैसे रहते हैं क्युकी आप में से बहुत से लोग सोचते होंगे की आखिर ये कैसे पॉसिबल है कि लोग अन्तरिक्ष में  राहते कैसे है तो आइये आज इस आर्टिकल में इससे रिलेटेड पूरी जानकारी लेते हैं.

अन्तरिक्ष में साइंटिस्ट कैसे रहते हैं  (How do scientists live in space in Hindi)

अन्तरिक्ष में सिर्फ अँधेरा होता है जब शुरूआत में साइंटिस्ट अन्तरिक्ष में जाते हैं तो उन्हें वहां के माहौल में ढलने में थोडा टाइम लगता है वहां की चीज़े सीखने में समझने में समय लगता है अन्तरिक्ष का गुरुत्वाकर्षण शून्य होता है यहाँ पर जब आप अन्तरिक्ष में रहने के लिए जाते है तो कुछ दिनों तक जब आप सुबह उठते है तो आपका दिमाग पूरी तरह से काम नहीं करता है आप 95% तक तरोताजा महसूस नही करते है तो ऐसी स्थिति में आप सही से काम भी नही कर पाते हैं चीज़े जल्दी भूल जाते हैं.

अन्तरिक्ष में द्रव तैरते रहते है यहाँ तक की अन्तरिक्ष यात्री की शरीर में भी, अगर ध्यान न दिया जाये तो सिर तक भी जा सकते हैं अंतरिक्ष में आने से पहले यात्री अलग  तरह दिखता है लेकिन अन्तरिक्ष में आने के बाद अलग तरह दिखता है यहाँ आने के बाद आपका चेहरा थोड़ा मोटा और गोलकार हो जाता है ऐसा इसीलिए होता है क्युकी दिल का खून हमारे सिर की तरफ जाता है धरती पर गुरुत्वाकर्षण होने के कारण खून पैरों की तरफ जाता है.क्रेनियल प्रेसर ज्यादा होता है जो ज्यादा तरल दिमाग में जाता है जो आपके शरीर के ऑप्टिकल नर्व पर दबाव डालता है और आँखों पर भी दबाव डालता है जिससे आपकी आँखों की रौशनी में थोडा फर्क आ जाता है आपको थोड़ा धुंधला दिखाई देने लगता है और दूर होने वाली चीजों को पढने में काफी ज्यादा दिक्कत होती है.

स्पेस एजेंसी के डॉक्टर नजर की इस समस्या के पीछे एक और वजह बताते है अतंरिक्ष में बहुत कम बार ही दूर फोकस कर पाती है अन्तरिक्ष यात्रियों के पास बहुत कम ही ऐसे देखने का टाइम मिलता है कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि अन्तरिक्ष से लौटने के बाद भी धरती पर आपकी आँखों की रोशनी फिर से ठीक हो जाती है. नाक भी भार शून्यता की आदी हो जाती है क्युकी वैसे भी स्पेस स्टेशन में ऐसा कुछ नही है जिससे नाक से सूघने का काम किया जाता रहे और उपरी हिस्से में द्रव ज्यादा जमा होने की वजह से सूंघने के लिए जिम्मेदार और फैक्ट्री नर्व पर भी दबाव बढ़ता है मतलब की सूंघने की क्षमता कम हो जाती है जिससे आपकी आवाज भी भारी हो जाती है इसलिए अन्तरिक्ष में भेजा जाने वाला खाना ज्यादा मसालेदार होता है.

पेट भी भारहीन हो जाता है धरती पर पेट की गैस नीचे की तरफ आती है और छोटे-छोटे हिस्से नीचे की तरफ आ जाते है और दोनों के बीच में पाचन प्रक्रिया होती है लेकिन अन्तरिक्ष में पेट भारहीन होने की वजह से डकार से गैस द्रव की बजाय ठोस पदार्थ भी शरीर से बाहर आ सकते हैं जो सही नही है इसीलिए अन्तरिक्ष में गैसयुक्त पेय पदार्थो पर पाबन्दी होती है.

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