वायेजर यान के लिए बुरी खबर | Bad news for voyager in Hindi

दोस्तों आप में से बहुत से लोगो को वायेजर यान के बारे में जानकारी होगी लेकिन कुछ लोगो को इसके बारे में नही पता होगा इसीलिए अज इस आर्टिकल में हम आपको वायेजर यान से रिलेटेड पूरी जानकारी देंगे, जो लोग इसके बारे में पूरी जानकारी चाहते है वो हमारे इस आर्टिकल को जरुर पढ़ें.

वायेजर यान के लिए बुरी खबर क्या है?

नासा द्वारा किये गये कुछ मिशन ऐसे है जिन्होंने मनुष्यों की स्पेस की नॉलेज को पूरी तरह से बदल दिया, इन्ही मिशन्स में से एक मिशन वायेजर मिशन भी है साल 1977 में नासा ने अंतरिक्ष में दो इन्टर्स्टेलर प्रूफ को लॉन्च किया था, सबसे पहले वायेजर 2 को लॉन्च किया गया और उसके 15 दिनों के बाद वायेजर 1 भी लॉन्च कर किया गया था सबसे पहले इन दोनों को ऐक्सप्लोरेशन करने के लिए जिपिटर और सेटेन की तरफ भेजा गया क्योंकि उस समय इन दोनों ग्रहों की पोज़ीशन में एक एलाइनमेंट थी जिसके कारण दोनों ग्रहों को काफी अच्छे से समझा जा सकता था.

ये दोनों मिशन ही सक्सेसफुल रहे और इन्होंने वैज्ञानिकों को हमारे सोलर सिस्टम और उसमें मौजूद प्लैनेट की जानकारी दी थी जिसके बाद वैज्ञानिकों ने यह फैसला किया कि वायेजर 2 को यूरिनस और नेपट्यून की ओर भेज दिया जाए जिससे वहाँ से भी हमें काफी ज्यादा डेटा मिल सके जो क्युकी उस समय तक हमारे पास सोलर सिस्टम और उसके दूसरे प्लैनेट के बारे में बहुत कम जानकारी थी इस तरह के स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए 1977 का समय बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि उस समय यूरिनस और नेपट्यून की भी एक स्पेशल अलाइनमेंट थी

इसके अलावा यूरिनस और नेपट्यून भी अलाइनमेंट में थी और ऐसा हर 176 साल में केवल एक बार ही होता है इसी कारण से उस समय यूरिनस और नेपट्यून की ओर भेजा गया था क्योंकि तब उसकी स्पीड काफी बढ़ सकती थी और जहाँ नेपट्यून ग्रह तक पहुंचने के लिए 30 साल लग जाने थे वही यह दूरी स्पेसक्राफ्ट केवल 12 साल में ही तय कर सकता था क्योंकि ऐसा मौका बार बार नहीं आता इसलिए नासा ने भी उस समय इस मिशन को एक्सपैंड करने का फैसला किया जिससे इस मिशन के द्वारा ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके.

शुरुआत में इस मिशन को केवल जिपिटर और सेटेन तक ही सीमित समझा गया था लेकिन बाद में इस मिशन ने वैज्ञानिकों को काफी हैरान कर दिया और ये आज तक के इतिहास में हमारे वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि बन गया. इन दोनों के कारण ही नासा के वैज्ञानिक हमारे सोलर सिस्टम के चार बड़े ग्रहों को समझ सकें और इनसे मिलने वाली इमेज के कारण वे इन ग्रहों के चाँद को काफी गहराई से समझ सकें उस समय तक इस तरह का कोई मिशन हमारे लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे पहले हमे उनके बारे में कुछ भी नहीं पता था हमें हमारी सोलर सिस्टम के कैस जाइंट्स और आइस जॉब्स के बारे में भी ज़्यादा नॉलेज नहीं थी (VOYAGER) वायेजर1 और वायेजर2 के मिशन ने वैज्ञानिकों की हमारे सोलर सिस्टम के प्लैनेट्स के एन्वायरनमेंट और स्ट्रक्चर को समझने में भी काफी मदद की.

इसके अलावा हमने इस दौरान हमारे सोलर सिस्टम के प्लैनेट के चारों ओर घूम रहे मून्स और उनके एन्वायरनमेंट के बारे में भी जाना था. ये सभी जानकारी हमारे लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान हमें कई ऐसी चीजें पता चली थी जिससे हमारे फ्यूचर के स्पेस क्राफ्ट मिशन को काफी सहायता मिली इन्वाइजर स्पेस क्राफ्ट को सदर्न कैलिफोर्निया की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में बनाया गया था इस मिशन के ओरिजिनल प्रोग्राम का खर्चा 865 मिलियन डॉलर्स था लेकिन बाद में जब वायेजर स्पेसक्राफ्ट को इंटरस्टेलर स्पेस में भेजने का फैसला किया गया और उसे वायेजर इन्टर्स्टेलर मिशन बना दिया गया तब नासा को 30 मिलियन डॉलर का खर्चा और उठाना पड़ा था.

अगस्त 2012 में वायेजर 1 हमारे सोलर सिस्टम के बाहर इंटरस्टेलर स्पेस में पहुँच गया जो तारों के बीच का एक खाली स्थान है जहाँ डैड स्टार के कुछ हिस्से भी मौजूद होते हैं इसके अलावा इंटरस्टेलर स्पेस में rogue प्लैनेट्स भी पाए जाते हैं और इसलिए हमारे वैज्ञानिकों के लिए एक काफी बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि अब वे इसे इंटरेस्टेलर स्पेस को काफी अच्छे से समझ सकते थे.

इसके बाद नवंबर 2018 में वायेजर 2 को भी इंटरस्टेलर स्पेस में भेज दिया गया और फिर इन दोनों स्पेसक्राफ्ट नासा के वैज्ञानिक को तक काफी जानकारी डीप स्पेस के नेटवर्क के द्वारा पहुंचाई थी इसके द्वारा उन्हें यह भी पता चल सका कि जुपिटर की एक चाँद जिसका नाम आयो (IO) उस पर काफी ज्यादा एक्टिव वाल्केनो मौजूद हैं ऐसा पहली बार था जब वैज्ञानिकों को यह पता चला कि धरती केवल ऐसा ग्रह नहीं है जहाँ पर वल्कैनोज मौजूद होते हैं इसलिए ये भी हमारे वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत ही नई और काफी बड़ी खुश थी ये जानकर आप भी काफी हैरान हो जायेंगे कि इन दोनों स्पेसक्राफ्ट ने जुपिटर और उसके मूवीज़ की लगभग 33,000 से भी ज्यादा फोटोग्राफ्स वैज्ञानिकों तक पहुंचाई थी

इसके बाद जब वायेजर 2 को यूरिनस और नेपट्यून की ओर भेजा गया तो यह पहला ऐसा स्पेस क्राफ्ट बना जो हमारे सोलर सिस्टम में इतनी दूर मौजूद रहे तक पहुँच सका था असल में जब इन दोनों स्पेसक्राफ्ट जुपिटर ग्रह पर अपनी खोज कर ली थी तब उनमें से वायेजर 1 सैटर्न की रिंग्स की ओर बढ़ा और आगे चलकर हमें सैटर्न और उसके मून्स के बारे में काफी कुछ जानकारी दी और इससे हमें सैटर्न के रिंग्स के बारे में भी काफी ज्यादा जानकारी मिली थी लेकिन वायेजर 2 की दिशा यूरिनस ग्रह की ओर मोड़ दी गयी और वायेजर 2 ने  यूरिनस और नेपट्यून की ओर अपना सफर शुरू किया और वहाँ पहुँचकर हमें यूरेनस पर्याप्त उनके बारे में काफी ज्यादा जानकारी दी.

वायेजर 2 स्पेसक्राफ्ट के चलते हमें यूरिनस और नेपट्यून के अट्मोस्फेयर और कंपोजिशन के बारे में काफी जानकारी मिली. लेकिन अपने मिशन को कंप्लीट करने के बाद भी इन स्पेसक्राफ्ट को रोका नहीं गया बल्कि उनके द्वारा लगातार रिसर्च जारी रखी गयी क्योंकि 1977 में इन दोनों स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया गया था तब ये सोचा गया था कि जहाँ मिशन केवल 4 साल तक ही चलेगा लेकिन फिर भी यह मिशन हमारे वैज्ञानिकों के लिए कितना खास मिशन रहा है जब 1986 में वायेजर 2 ने यूरिनस के ऊपर से उड़ान भरी तो इसने उसके 10 नये चाँद को खोजा और साथ ही उसने उसके दो नये छल्लों को भी खोजा.

इसके बाद वैज्ञानिक को पता चला कि सौर मंडल में शनि ग्रह के साथ-साथ यूरिनस के पास भी रिंग्स है इसके बाद ही हमारे वैज्ञानिकों ने इन दोनों स्पेसक्राफ्ट के कैमरे को बंद करने का फैसला किया था लेकिन काल सेकंड वैज्ञानिक को से कहा कि वायेजर 1 के कैमरे अभी बन्द ना किए जाएं उससे एक आखिरी सेट ऑफ इमेजेज ली जानी चाहिए, इसलिए जब नासा के अधिकारियों ने उनकी बात मानी तब उन्होंने हमारे सोलर सिस्टम की तरफ से वायेजर 1 का कैमरा घुमा दिया और उससे जो तस्वीरें मिली वह सभी को हैरान करने वाली थी. 14 फरवरी 1990 में जब वायेजर 1 से तस्वीरें ली गईं तब हमारे वैज्ञानिकों को पता चला कि हमारी धरती कितनी छोटी दिखाई आती है उस तस्वीर में हमारी धरती केवल एक नीले बिंदु की तरह दिखाई आ रही थी और इसलिए हमारी धरती की इस तस्वीर को The Pale Blue Dot कहकर बुलाया जाने लगा,

इसके बाद धरती के साथ साथ सूर्य और बाकी ग्रहों की भी इसी प्रकार तस्वीरें ली गयी, लेकिन अभी एक इंटरव्यू के दौरान नासा फिजिसिस्ट रैल्फ मैग्नेट ने कहा कि 45 सालों से चल रहे वायेजर मिशन को अब नासा रोकने की तैयारी कर रहा है ऐसा इसलिए क्योंकि अब इन ट्विन प्रोप्स की पावर कम हो रही है इन दोनों ट्विन्स प्रोप्स की पावर लेवल्स हर साल 4 वॉट कम हो जाती है वैसे तो नासा ने पहले से ही काफी प्रयास किए है जिससे इन दोनों स्पेसक्राफ्ट को लंबे समय तक अंतरिक्ष में खोज के लिए इस्तेमाल किया जाए और ऐसा करने के लिए उन्होंने पहले ही इसके काफी इंस्ट्रूमेंट्स को बंद कर दिया ताकि इसकी पावर कम इस्तेमाल हो क्योंकि वायेजर 1 और वायेजर 2 दोनों में ही 10 अलग इंस्ट्रूमेंट लगाये गये थे

लेकिन बाद में नासा के वैज्ञानिकों ने इनकी पावर बचाने के लिए वायेजर 1 के 6 इंस्ट्रूमेंट्स को स्विच ऑफ जॉब कर दिया और वायेजर 2 के 5 इंस्ट्रूमेंट को भी बंद कर दिया गया जिससे अब वायेजर 1 में सिर्फ 4  और वायेजर 2 में सिर्फ 5 इन्स्ट्रूमेंट्स वर्किंग कंडीशन में है. अब नासा ने यह फैसला किया है कि अब इन दोनों स्पेसक्राफ्ट के बाकी के भी कुछ वर्किंग सिस्टम्स को भी धीरे धीरे बंद कर दिया जाएगा और 2030 तक यह मिशन पूरी तरह से काम करना बंद कर देंगे इस दौरान इनकी यात्रा तो नहीं रुकेगी बल्कि ये उतनी ही तेजी से अंतरिक्ष में लगातार ट्रैवल करते रहेंगे और हमारे सोलर सिस्टम से बाहर दूसरे सोलर सिस्टम की ओर अपने सफर को तय करते रहेंगे लेकिन इस दौरान अब इंसानों का कोई कम्यूनिकेशन इनसे नहीं होगा. लेकिन अगर ये बिना किसी एस्टेरॉयड से टकराते हुए ऐसे ही चलते रहे तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 40,000 साल के बाद वायेजर 1 हमारे सोलर सिस्टम के सबसे नजदीकी स्टार सिस्टम प्रॉक्सिमा सेंचुरी तक पहुँच जाएगा.

इन दोनों स्पेसक्राफ्ट पर ये गोल्डन रिकॉर्ड भी लगा हुआ है जिसके अंदर कई सारी तस्वीरें कुछ लिखावट और हमारी पृथ्वी की लोकेशन भी मौजूद है जिससे यह पता चलता है कि ये दोनों स्पेस क्राफ्ट कहाँ से आई और साथ ही उसमें कुछ धरती की फोटोज भी मौजूद हैं इसलिए शायद ही कभी यह स्पेसक्राफ्ट किसी अन्य सिविलाइजेशन तक पहुँच गई तो इस गोल्डन रिकॉर्ड के द्वारा उन्हें शायद ये बता पाए कि वह कहाँ से आया है और उनकी दुनिया कैसी दिखती है इसके साथ साथ इस पर 90 मिनट का म्यूजिक भी मौजूद हैं वैज्ञानिकों को ये उम्मीद है कि शायद भविष्य में ये किसी इंडियन सिविलाइजेशन को मिल सकता है अगर ऐसा हुआ तो इस स्पेसक्राफ्ट के द्वारा वह सिविलाइज़ेशन हम मनुष्यों के बारे में काफी कुछ जान सकती है. इसमें हमारी सोलर सिस्टम और हमारी पृथ्वी की लोकेशन को स्टार्स की मदद से समझाया गया है तो अगर कोई इंटेलीजेंट एलियन सिविलाइजेशन को यह स्पेस क्राफ्ट मिलता है तो इसके द्वारा वे आसानी से हमारी सोलर सिस्टम और हमारी पृथ्वी तक पहुँच सकते हैं.

तो दोस्तों उम्मीद करते है कि वायेजर 1 और वायेजर 2 से रिलेटेड आपको पूरी जानकारी मिल गयी होगी.

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