जेनरिक और ब्रांडेड दवा में क्या अंतर होता है? | क्यों सस्ती होती है जेनरिक दवाएं?

जेनरिक और ब्रांडेड दवा में क्या अंतर होता है? क्यों सस्ती होती है जेनरिक दवाएं?

जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं में क्या फर्क होता है, जहाँ एक जगह उसी बीमारी की दवा 1.5 रुपए में मिल रही है वहीं दूसरी ओर 35 से 40 रुपये में, और इन दवाओं के लेकर सबसे बड़ी बात ये है कि दोनों ही दवाएं उसी बीमारी के इलाज के लिए बनी है जिसकी कीमत कही 1.5 रुपये तो कहीं पर 40 रूपए है. लेकिन क्या आपको पता है इनमे आखिर इतना अंतर क्यो? क्या सस्ती दवाई बीमारी का इलाज नही कर सकती.

हम आपको बता दें कि दोनों ही दवाई बीमारी के इलाज के लिए बनी है लेकिन कीमतों में बहुत फर्क है, वैसे तो हम जिस दवा की बात कर रहे है उसे जेनरिक मेडिसिन कहते है और महंगी दवाओं को ब्रांडेड मेडिसिन. लेकिन वहीं आज के समय में आप देखेंगे तो आपको कोई भी डॉक्टर जेनरिक मेडिसिन के बारे में वर्णन नही करेगा. यह तक कि मेडिकल स्टोर वाला भी आपको जेनरिक मेडिसिन नही देगा, क्युकी जिसमें ज्यादा फायदा होता है डॉक्टर वही दवा प्रिफर करेंगे. उसी तरह मेडिकल स्टोर वाला भी उन्ही दवाओं को बेचता है जिसमें उसे ज्यादा प्रॉफिट होता है.

लेकिन अगर देखा जाये तो इन सस्ती दवाओं के जरियें कई लोगों की जाने बचाई जा सकती है, लेकिन उसके बाद भी ये दवाइयां इतनी आसानी से नही मिलती. अगर देखें तो जेनरिक और ब्रांडेड दवाई की सामग्री में कोई अंतर नही होता, असल में सभी दवायें एक-एक तरह के केमिकल साल्ट से बनी होती है. इन दवाओं को बनाने के लिए तरह-तरह की रिसर्च की जाती है और उसके बाद इन्हे अलग-अलग बीमारी के लिए बनाया जाता है. जेनरिक दवा जिस सोल्ट से बनी होती है उसी के नाम से जानी जाती है और उसी नाम से बिकती है, जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाली पेरासिटामोल साल्ट को कोई कंपनी इसी के नाम से बेचे तो उसे जेनरिक दवाई कहा जायेगा. वहीं जब इसे ब्रांड जैसे क्रोसिन के नाम से बेचा जाता है तो ये उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है.

लेकिन इसमें सबसे बड़ा अंतर ये है कि सर्दी, ख़ासी और बुखार, बदन दर्द जैसे रोज मर्रा के दिक्कतों के लिए जो दवा महज 10 पैसे से लेकर 1.5 रुपये प्रति टेबलेट मिलती है, वहीं जब कोई ब्रांडेड कंपनी इसे अपने नाम से बेचती है तो इस दवा की कीमत 35 रुपये से 40 रुपये तक पहुँच जाती है. ऐसी कई जानलेवा बीमारी है जिनकी जेनरिक मेडिसिन बहुत ही कम कीमतों में आती है, लेकिन जब यही दवाएं कोई ब्रांडेड कंपनी बनाती है उस पर शोध करती है, रिसर्च करती है तो उसे बनाने के बाद कंपनी उस पर 15 से 20 साल के लिए पेटेंट ले लेती है.

अब उस दवा को बेचने के लिए मेडिकल रि-प्रेजेंटिव रखे जाते है इनकी मार्केटिंग पर अच्छा खासा पैसा खर्च होता है और इसी वजह से ये दवाएं इतनी महंगी हो जाती है, लेकिन अगर यही दवाएं इन खतरनाक बिमारियों के लिए जेनरिक में उपलब्ध होती तो बात ही कुछ और होती. जैसे- HIV की दवा तेनोफ़ोविर की ब्रांडेड दवा का खर्च 2500 डॉलर यानि करीब 1,75,000 रुपये आता है, जबकि जेनरिक दवा में यही खर्च 12 डॉलर यानि कि महज़ 840 रुपये महीने तक हो जाता है. इसी तरह कैंसर के इलाज़ में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की बात करें तो नोवारिट्स की कैंसर की दवा का एक महीने का खर्च 2158 डॉलर यानि कि करीब 1.5 लाख से ऊपर पड़ता है जबकि जेनरिक रूप में इसी दवा का खर्च 174 डॉलर प्रतिमाह यानि कि लगभग 12180 रुपये पड़ता है.

अगर कुल मिलाकर देखा जाये तो जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से कई गुना सस्ती पड़ती है, लेकिन इनका सस्ता होने का बहुत बड़ा कारण है, कारण ये है कि जेनरिक दवाओं की कीमत को सरकार तय करती है वहीं ब्रांडेड दवा बनाने के लिए कंपनीयां इस पर रिसर्च करती है पेटेंट लेती है और विज्ञापनों पर भारी भरकम खर्च करती है और इसी कारण से ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयां इतनी महंगी होती है. इसके आलावा डॉक्टर हेमशा ब्रांडेड दवाई ही लिखते है क्यूकी जेनरिक दवाई लिखने से उनका कोई फायदा नही.

अक्सर दवाई ,कंपनी (Generic aur branded Dava mein kya Antar hai) और डॉक्टर के बीच इलाज को लेकर बहुत बड़ा कनेक्शन होता है, डॉक्टर्स को इन दवाइयों को लिखने का कंपनी की तरफ से अच्छा खासा कमीशन मिलता है वहीं अगर वो जेनरिक दवा लिखने लगे तो उन्हें इसके लिए कुछ नही मिलेगा. यही वजह है कि डॉक्टर जेनरिक दवा लिखने से परहेज करते है, लेकिन अब हमारे भारत की सरकार ने इस पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.

अब सरकार (Generic aur branded Dava mein kya Antar hai) मरीजो को सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाने के लिए कानून में संसोधन की तैयारियां कर रही है. इसके बाद डॉक्टर्स को मरीजो के लिए सिर्फ जेनरिक दवाएं ही लिखनी होगी, न कि किसी विशेष ब्रांड या कंपनी की, लेकिन इसके बाद भी कोई गारंटी नही है कि मरीजो को सस्ती दवाएं मिलेंगी.

Image Credit: Shutterstock

इसे भी पढ़ें?

सुनामी आने पर खुद को कैसे बचायें?

गोवा की 10 सबसे अच्छी जगहें? 

जापानी लोग इतनी मेहनत क्यों करते हैं?

Leave a Comment