जापानी लोग इतनी मेहनत क्यों करते हैं? | जापान कितना विकसित देश हैं?

जापानी लोग इतनी मेहनत क्यों करते हैं?

दुनिया में सभी लोग जानते है कि जापान के लोग कितने ज्यादा मेहनती होते है क्यूकी जहाँ हम हफ्ते में 48 घंटे काम करने में ही परेशान हो जाते है, वही पर जापान के लोग वर्किंग ऑवर के साथ-साथ महीने के 80 घंटे का ओवर टाइम भी करते है सिर्फ यही नही, बल्कि इन्हे काम करना इतना ज्यादा पसंद है कि साल में मिलने वाली 20 paid लीव्स को भी सिर्फ 52.7% लोग ही use करते है क्यूकी वहाँ पर छुट्टी लेने से गिल्टी फील होता है.

अब आपको पता चल गया होगा कि सबसे हार्डवर्किंग किसी देश को सही मायने में माना जाये तो वो जापान है क्यूकी यहाँ की 25% कंपनियों में कर्मचारी हर महीने 80 घंटे का ओवर टाइम करते है. जिस वजह से जापानियों का काम ही उनकी जिंदगी जीने का एक तरीका बन चुका है हर हफ्ते 40 घंटे के काम और 18 घंटे ओवर टाइम के बदले किसी भी कर्मचारी को बदले में कुछ नही मिलता, क्यूकी उनका ये ओवर टाइम, उनके वर्क schdeuled का ही एक हिस्सा होता है. जो पूरी तरह से अनपेड होता है न ही इसके बदले उनको इन्सेन्टिव मिलते है, न ही लीव्स, और न ही कोई रिवॉर्ड मिलते.

उनका ये वर्क कल्चर ओवर टाइम के साथ ही उन्हें अपनी कंपनी की तरफ अपनी लॉयल्टी और रेस्पेक्ट भी दिखानी होती है, जिस वजह से वहाँ के कॉर्पोरेट कल्चर में काम करने वाले को सैलरीमैन कहते है. मतलब कि जो व्यक्ति किसी कंपनी को ज्वाइन करता है उससे ये एक्स्पेक्ट किया जाता है कि वो अपना पूरा करियर उसी कंपनी के लिए काम करते हुए बिताये, सिर्फ काम करते हुए ही नही बल्कि व्यक्ति को अपनी कंपनी की तरफ इतना कोआपरेटिव होना पड़ता है कि ऑफिस के लम्बी वर्किंग ऑवर्स के बाद भी उसे अपनी टीम के साथ hangout करने जाना होता है.

अगर वो नही गया तो उसे unprofessional और rude माना जाता है, और यही इंसान कब मशीन की तरह काम करने और काम में डूबें रहने का उनका तरीका ऐसा हो चुका है कि अब जापान और हॉलिडे कभी भी एक सेंटेंस में फिट नही होते. इसीलिए तो साल में मिलने वाली 20 paid लीव्स में से भी सिर्फ 52.4% ही कर्मचारी अपने उस लीव्स को यूज कर पाते है, क्यूकी लोगों को लीव लेने में गिल्टी फील होता है.

इसे माइक्रोसॉफ्ट –जापान ने 2019 में prove भी किया था जिसमें उसने एक एक्सपेरिमेंट को अपने कर्मचारी से हफ्ते में 4 दिन काम करवा कर उन्हें 5 दिन का pay दिया था और इस एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट इतना ज्यादा फायदेमंद आया था कि 4 दिन काम करने के बावजूद प्रोडक्टिविटी रेट 40% बढ़ गया था, क्यूकी कर्मचारियों को लिमिटेड काम के साथ एक एडिशनल डे का pay भी मिल रहा था.

जिसने उन्हें as an employee satisfied किया और इसी satisfaction की वजह से कंपनी का प्रोडक्टिविटी रेट काफी बढ़ गया था. जिसके बाद कंपनी ने इस एक्सपेरिमेंट को दुबारा करने को निश्चय किया, और अब इस एक्सपेरिमेंट से ये बात साफ़ हो गयी थी, कि अगर कंट्री को अपना प्रोडक्टिविटी रेट बढ़ाना है तो उसे अपने employee के वर्किंग ऑवर को कम करना होगा. इस टॉक्सिक वर्क कल्चर की दूसरी प्रॉब्लम हेल्थ इश्यूज है.

जिसकी इनफार्मेशन खुद मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ लेबर एंड वेलफेयर की रिपोर्ट ने दिया था और बताया था कि साल 2000-2005 के बीच में 60 लाख लोगों ने एक हफ्ते में 60 घंटे से ज्यादा काम किया था और रिजल्ट के मुताबिक उनमें से 30 लोगों को हार्ट की प्रॉब्लम हुई थे, या फिर उनके ब्रेन पर इसका असर हुआ था, क्यूकी वैज्ञानिक रूप से ये भी बात साबित हुई है कि ऑन एन एवरेज एक ह्यूमन ब्रेन दिन में सिर्फ 3 घंटे की प्रोडक्टिविली काम कर सकता है लेकिन जापान के लोगों को तो 11-11 घंटे काम करना पड़ता है और ये सब कुछ ब्रेन के लिए प्रोसेस करना उसकी कैपेसिटी से ज्यादा हो जाता है जिससे लोगों को लैक ऑफ़ फोकस, लैक ऑफ मोटिवेशन की प्रॉब्लम होने लगती है.

अगर ओवर टाइम के कारण स्ट्रेस लेवल और बढ़ जाते है तो उसका असर सीधे हार्ट पे भी हो सकता है क्युकी अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के हिसाब से जब ब्रेन स्ट्रेस में होता है तब उसमे रिलीज़ होने वाले एड्रेनालाईन, नोराद्रेनालिने और कोर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हार्मोन्स हमारे हार्ट रेट को बढ़ा देते है और हार्ट मसल्स को कॉन्ट्रैक्ट कर देते है.

अब इसी स्ट्रेस से रिलेटेड इंसिडेंट का एक उदाहरण है 2013 में हुए जौरनालिस्ट मीवा सदो की मौत जिन्होंने एक महीने में 159 घंटे, 37 मिनट्स का ओवर टाइम किया था, जिसके बाद हार्ट फेलियर से उनकी मौत हो गयी थी. यही नही 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर दस हज़ार में से 20% लोग एक महीने में 80 घंटे से ज्यादा का ओवर टाइम करते है और ऐसे में आप ही सोचिये कि उन्हें हेल्थ रिस्क कितना होता होगा और इसी वर्क कल्चर का अगला सबसे बड़ा प्रॉब्लम है वर्क लोड के कारण जापान का बढ़ता सुसाइड रेट.

सच में जापान (Japani log itna mehnat kyon karte hain) में वर्क लोड की वजह से लोगों की मौत होना इतना कॉमन हो चुका है कि इसके लिए उन्होंने स्पेशली करोषि टर्म (डेथ फ्रॉम ओवर वर्क) तक को इज़ात कर दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दस हज़ार लोग करोषि का शिकार होते है, जबकि गवर्नमेंट डाटा इस फिगर को सिर्फ 200 ही बताती है और जो लोग इससे बच जाते है वो अपने परिवार की जरूरतों को पूरा नही कर पाने की वजह से डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते है और भी सुसाइड कर लेते है.

Image Credit: Shutterstock

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